: राजस्थान का चायवाला बना प्लास्टिक मुक्त गांवों का नायक
: कैसे कानाराम मेवाड़ा के दिल में चुभी प्लास्टिक की समस्या?
पाली जिले के बिसलपुर गांव के कानाराम मेवाड़ा, जो पेशे से एक चायवाले हैं, ने अपनी जिंदगी में एक ऐसा बदलाव किया, जो कई गांवों के लिए प्रेरणादायक बन गया। यह सफर तब शुरू हुआ जब विदेशी पर्यटकों ने गांव में गंदगी देखकर टिप्पणी की, जिससे कानाराम के मन में गहरी चोट लगी और उन्होंने इसे बदलने का निश्चय किया।
: प्लास्टिक के खिलाफ कानाराम का पहला कदम
कानाराम ने अपनी चाय की दुकान पर एक बैनर लगाया जिसमें लिखा, “प्लास्टिक का कचरा लाइए और 20 रुपए प्रति किलो पाइए।” उन्होंने डोर-टू-डोर जाकर प्लास्टिक एकत्र करना शुरू किया और इसके बदले में रुपए, पौधे और किताबें उपहार में देना शुरू किया। इस पहल से गांव के बच्चे और बड़े भी इस अभियान का हिस्सा बन गए।
: 12 से अधिक गांवों में प्लास्टिक मुक्त अभियान का विस्तार
: प्लास्टिक से मुक्त हो रहे हैं ये गांव
कानाराम के प्रयासों का असर अब पाली के जवाई बांध इलाके के 12 से अधिक गांवों तक पहुंच गया है, जिनमें बिसलपुर, बलवना, जिवदा, बेड़ा और रावत शामिल हैं। गांवों के लोग अब खुद प्लास्टिक एकत्र कर कानाराम के पास लाते हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण की एक लहर सी आ गई है।
: मुंबई की संस्था का सहयोग और नया प्रयोग
मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप कुमार जैन से कानाराम की मुलाकात ने इस मुहिम को नई दिशा दी। दिलीप की सहायता से कानाराम ने एक मशीन खरीदी जो वेस्ट प्लास्टिक से फर्नीचर और अन्य उपयोगी सामान तैयार करती है। अब कानाराम इस प्लास्टिक को कुर्सियों, बेंच और सजावटी सामान में बदल रहे हैं, जो लोगों को खूब पसंद आ रहा है।
: केन्द्र सरकार से मिला कानाराम को सम्मान
: ग्रीन वॉरियर के रूप में कानाराम की पहचान
कानाराम की इस मुहिम को देखते हुए केंद्र सरकार ने नई दिल्ली में आयोजित समारोह में उन्हें सम्मानित किया। उनके इस कार्य से न केवल पाली जिले बल्कि पूरे देश में उन्हें ग्रीन वॉरियर के रूप में मान्यता मिली है।
: कैसे कानाराम मेवाड़ा का यह अभियान बना लोगों के लिए प्रेरणा?
: पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने वाला चायवाला
कानाराम का यह सफर दिखाता है कि एक साधारण व्यक्ति भी बड़े बदलाव ला सकता है। उनके प्रयासों से प्रेरित होकर अन्य गांवों के लोग भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक हो रहे हैं और प्लास्टिक के उपयोग को कम कर रहे हैं।
: निष्कर्ष
कानाराम मेवाड़ा ने अपने संकल्प और मेहनत से प्लास्टिक मुक्त गांवों की जो प्रेरणादायक मिसाल पेश की है, वह हम सभी के लिए सीख है। उनके प्रयास से गांव का न केवल नाम रोशन हुआ है, बल्कि यह साबित हो गया है कि अगर इरादे मजबूत हों तो किसी भी मुश्किल को हराया जा सकता है।