बेबस किसान
धरती का सपूत हूँ मैं, मेहनत का मजदूर,
अन्न उगाता हूँ यहाँ, झेलता हर दौर।
खेतों में पसीना बहता, आँखों में आस,
परिवार की भूख मिटाने, करता हूँ प्रयास।
मेरे सपनों की धरा, सूखी और बेकार,
बरसात की राह देखता, कब होगा उपकार?
बैंक का कर्ज है भारी, सूद का है भार,
जिंदगी की इस जंग में, मैं ही हूँ लाचार।
मिट्टी में मिली है मेरी मेहनत, खून-पसीना,
फिर भी पेट खाली, बेमानी लगता जीना।
कहाँ हैं वो जो कहते, ‘जय जवान, जय किसान’,
सच तो ये है, किसान की कहानी है अनसुनी बयान।
बेबसी की ये स्याही, कागज पर जब बहे,
किसान की चीखों को कौन सुने, कौन कहे।
धरती माँ की गोद में, एक दिन चैन से सो जाऊं,
कर्ज की इस बेड़ी से, मुक्त हो जाऊं।
अगर ये देश समझे, किसान की पुकार,
शायद फिर से हरे होंगे, सूखे हुए खेतों के द्वार।
पर आज तो मैं हूँ बस, किस्मत का मारा,
मौत को गले लगाने, बस यही है सहारा।
यह कविता किसान की व्यथा को बखूबी बयां करती है। किसान की मेहनत, उसके संघर्ष और उसकी बेबसी को शब्दों में पिरोया गया है।
कविता के प्रमुख भाव:
- मेहनत और संघर्ष: कवि ने किसान की मेहनत और संघर्ष को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है। वह दिन-रात खेतों में मेहनत करता है, लेकिन उसे उसके मेहनत का उचित फल नहीं मिल पाता।
- बेबसी और निराशा: किसान अपने जीवन की बेबसी और निराशा से बहुत दुखी है। वह सूखे, कर्ज और सरकार की उपेक्षा से जूझ रहा है।
- आशा और अपेक्षा: कवि के मन में एक आशा की किरण भी है। वह चाहता है कि सरकार किसानों की समस्याओं पर ध्यान दे और उनकी मदद करे।
- देशभक्ति और राष्ट्रवाद: कवि देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत है। वह चाहता है कि देश किसानों का सम्मान करे।
कविता की विशेषताएं:
- सरल भाषा: कवि ने बहुत ही सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया है, जिससे आम आदमी भी आसानी से कविता को समझ सकता है।
- भावुकता: कविता में भावुकता का पुट है, जो पाठक को भावुक कर देता है।
- वास्तविकता: कविता किसान के जीवन की वास्तविकता को बयां करती है।
- प्रतीकात्मकता: कविता में कई प्रतीकों का प्रयोग किया गया है, जैसे- सूखा, कर्ज, धरती माँ आदि।
किसानों की समस्याएं:
कविता के माध्यम से किसानों की कई समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है:
- सूखा: सूखा किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है। इससे फसलें बर्बाद होती हैं और किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।
- कर्ज: किसानों पर कर्ज का बोझ बहुत अधिक है। वे बैंक और साहूकारों से कर्ज लेकर खेती करते हैं, लेकिन अक्सर कर्ज चुकाने में असमर्थ होते हैं।
- सरकारी उपेक्षा: सरकार किसानों की समस्याओं पर ध्यान नहीं देती है। किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है और उन्हें कृषि उपकरणों और बीजों के लिए सब्सिडी भी नहीं मिलती है।
निष्कर्ष:
यह कविता किसानों की व्यथा को बयां करने के साथ-साथ समाज को भी सोचने पर मजबूर करती है। हमें किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लेना चाहिए और उनके कल्याण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
यह कविता किसानों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता की भावना जगाती है।