रोज़ सुबह उठकर, दौड़ लगाते हैं,
ऑफिस पहुंचने को, हम सब भागते हैं।
गाड़ियों की लाइन, लग जाती है लंबी,
हर कोई बड़ा है, सबको है जल्दी।
सिग्नल पर रुके, इंजन गर्म हो रहा,
पसीना छूट रहा, मन बेचैन हो रहा।
हॉर्न बजाते रहते, सब गुस्से में हैं,
मानो युद्ध छिड़ा हो, कोई जीतने को है।
ऑटो, रिक्शा, कार, बस, सब एक साथ,
सड़कें जाम हो गईं, मानो कोई बाढ़।
पैदल चलने वाले, भीड़ में फंसे,
हर तरफ शोर है, मन अशांत है।
“ऑटो वाले की चिल्लाहट, रिक्शा वाले की धक्कामुक्की,
सब मिलकर बनाते हैं एक अजीब सी धुन।”
कभी-कभी लगता है, ये शहर है पागल
हर कोई दौड़ रहा है, एक अजीब सा खेल।
शांति कहां मिलती है, इस भागदौड़ में,
खो गए हैं हम सब, इस मशीन में।
कविता से मिलने वाला संदेश
“ट्रैफिक का तांडव” कविता हमारे दैनिक जीवन में एक आम समस्या, यानी ट्रैफिक जाम को बहुत ही प्रभावी ढंग से चित्रित करती है। इस कविता से हमें कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं:
प्रदूषण और शोर: ट्रैफिक जाम से न केवल यातायात बाधित होता है बल्कि इससे प्रदूषण और शोर भी बढ़ता है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
धैर्य का अभाव: कविता में बताया गया है कि लोग ट्रैफिक जाम में फंसकर कितने अधीर हो जाते हैं और गुस्सा करते हैं। इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है।
व्यस्त जीवनशैली: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सभी किसी न किसी दौड़ में लगे हुए हैं। हमारी यह जीवनशैली हमें मानसिक तनाव और बीमारियों की ओर धकेल रही है।
इस कविता के माध्यम से कवि यह भी बताना चाहते हैं कि हमें अपने शहरों की योजना बनाने वालों को इस समस्या के समाधान के लिए प्रेरित करना चाहिए।